प्रकाशित - 13 Sep 2024
किसानों को पराली जलाने से रोकने और भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए सरकार की ओर से किसानों को फ्री में बायो डीकंपोजर वितरित किया जाएगा। बताया जा रहा है कि राज्य में किसानों के बीच करीब 7.5 लाख बायो डीकंपोजर वितरित किए जाएंगे। कृषि विभाग की ओर से धान की कटाई के बाद बचे फसल अवशेष जिसे पराली कहा जाता है इसके प्रबंधन की तैयारी अभी से शुरू कर दी गई है। अक्सर देखा जाता है कि किसान धान की कटाई करने के बाद अगली फसल की बुवाई की जल्दी में फसल अवशेष या पराली को आग लगा देते हैं जिससे पर्यावरण और मिट्टी सेहत को नुकसान पहुंचता है। ऐसे में यूपी में कृषि विभाग की ओर से फसल अवशेष प्रबंधन के तहत धान कटाई के बाद बची पराली का सही उपयोग करने लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके तहत किसानों को पराली से खाद तैयार करने के लिए बायो डीकंपोजर दिए जाएंगे।
फसल अवशेष प्रबंधन के लिए बायो-डीकंपोजर घोल तैयार किया जाता है। इस घोल का पराली पर छिड़काव किया जाता है। फसल अवशेष (पराली) पर इसे छिड़कने के 15-20 दिन के भीतर फसल अवशेष जैसे- फसलों के ठूंठ गलना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे सड़कर खाद बन जाते हैं और मिट्टी में मिल जाते हैं। यह खाद खेत की जमीन को उपजाऊ बनाने का काम करती हैं। एक एकड़ क्षेत्र के लिए डीकंपोजर की एक बोतल पर्याप्त रहती है। बता दें कि डीकंपोजर का पौधों पर छिड़काव करने से विभिन्न फसलों में सभी प्रकार के रोगों पर प्रभावी तरीके से रोक लगती है। वेस्ट डीकंपोजर का उपयोग करके किसान बिना रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक का उपयोग करके फसल उगा सकता है।
पराली में सिलिका की मात्रा पाई जाती है। ऐसे में गोशालाओं में चारे के उपयोग में लाये जाने वाले चारे की कुल मात्रा का 25 प्रतिशत पराली को मिश्रित किया जा सकता है जो पशुओं के लिए हरे चारे की कमी को पूरा करने में सहायता दे सकता है। यूपी सरकार ने चालू वित्त वर्ष में कम से कम 20 हजार टन पराली निराश्रित गोशालाओं में भेजने का लक्ष्य तय किया है।
कृषि विभाग ने जिला कृषि अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जिन किसानों को बायो-डीकंपोजर वितरित किए जाने हैं, उनकी सूची तैयार की जाए। क्षेत्रवार रिपोर्ट तैयार की जाए ताकि भविष्य में अधिक से अधिक किसानों को डीकंपोजर उपलब्ध कराया जा सके।
फसल अवशेष (पराली) जलाने के कई नुकसान है। जिसमें सबसे पहला नुकसान खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट होना है। खेत धीरे-धीरे बंजर होता चला जाता है। इसे जलाने से वायुप्रदूषण फैलता है जिसे आसपास के लोगों को श्वास संबंधी रोग होने की संभावना रहती है। ऐसे में पराली जलाने से किसानों को रोकने के लिए सख्त निर्देश दिए गए हैं। इतना ही नहीं पराली जलाने पर 15 हजार रुपए के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।
किसान वेस्ट डीकंपोजर घर में तैयार करके उसका उपयोग भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में कर सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले 2 किलो गुड़ को 200 लीटर पानी से भरे प्लास्टिक के ड्रम में मिला दें। अब एक बोतल वेस्ट डीकंपोजर की लें और उसे गुड़ के घोल वाले प्लास्टिक ड्रम में मिला दें। ड्रम में सही तरीके से वेस्ट डीकंपोजर मिलाने के लिए लकड़ी के एक डंडे से इसे हिलाये और सही तरीके से मिलाएं। इस ड्रम को पेपर या कार्ड बोर्ड से ढक दें और प्रतिदिन एक या दो बार इसे पुन: मिलाएं। इस तरह 5 दिनों तक मिलाने के बाद ड्रम का घोल क्रीमी हो जाएगा। जब घोल का रंग क्रीमी हो जाए तो समझ ले कि वेस्ट डीकंपोजर बनकर तैयार हो गया है। एक डीकंपोजर की बोतल से 200 लीटर वेस्ट डीकंपोजर घोल तैयार हो जाता है।
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