तापमान में बदलाव से धान में लग रहा है यह भयंकर रोग, ऐसे करें रोकथाम

Share Product प्रकाशित - 22 Feb 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा

तापमान में बदलाव से धान में लग रहा है यह भयंकर रोग, ऐसे करें रोकथाम

जानें, कौनसा है धान को लगने वाला यह रोग और इससे कैसे करें बचाव

अचानक तापमान में बढ़ोतरी ने धान की खेती (Paddy farming) करने वाले किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। तापमान में तेजी से रबी धान (Rabi paddy) की फसल में रोग लगने की संभावना बढ़ गई है। साथ ही कई जगहों पर धान की फसल में एक भयंकर रोग देखा गया है जिससे फसल को नुकसान हो रहा है। हाल ही में ओडिशा के संबलपुर जिले में किसानों के खेतों में रबी धान की फसल में तना छेदक कीट प्रकोप दिखाई दिया है जिससे फसल को नुकसान हो रहा है। खास कर हीराकुंड कमांड क्षेत्र में तना छेदक कीटों का प्रकोप अधिक देखने को मिल रहा है। ऐसे में किसानों को फसल नष्ट होने की चिंता सता रही है। इधर ओडिशा सरकार ने यहां के किसानों को कीटनाशक का छिड़काव के लिए सब्सिडी देने का फैसला किया है। इससे किसानों को कुछ राहत मिल सकेगी। 

ओडिशा में ही नहीं तापमान में इस कीट का प्रकोप अन्य जगहों पर भी हो सकता है। ऐसे में जिन किसानों ने रबी सीजन में धान की बुवाई की है उन्हें अपनी फसल को कीट-रोग से बचाने के उपाय के बारे में जानकारी अवश्य प्राप्त करनी चाहिए ताकि समय रहते फसल की कीट-रोग से सुरक्षा की जा सके। 

आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आपको तापमान बढ़ने के साथ ही रबी धान (Rabi paddy) की फसल में लगने वाले कीट रोग से फसल की सुरक्षा के उपायों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।

क्या है तना छेदक रोग (What is stem borer disease)

तना छेदक कीट चावल के दाने की तरह ही सफेद रंग का कीट होता है। इसका मुंह काला या भूरा होता है। इस कीट का प्रकोप गर्म और आर्द्र जलवायु में अधिक होता है। तना छेदक कीट तने को अंदर से खाता है जिससे कारण तना सूखा दिखाई देने लगता है। इसके बाद तना पीला पड़ जाता है। वहीं कुछ दिनों बाद पौधा लाल रंग का हो जाता है और इसके बाद पूरा सूख जाता है। इसके कारण धान की पैदावार को नुकसान होता है और उत्पादन भी काफी कम मिलता है।

तना छेदक कीट से धान की फसल को कितना हो सकता है नुकसान (How much damage can be caused to the paddy crop by stem borer insect)

तना छेदक कीट धान की फसल के लिए काफी नुकसानदायक होता है। इससे फसल की पैदावार में कमी आती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में इस पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो इससे फसल को नुकसान ज्यादा होता है। यह कीट जल्दी बुवाई की गई धान की फसल में करीब 20 प्रतिशत तक पहुंचा सकता है। जबकि देर से बुवाई की गई धान की फसल में करीब 80 प्रतिशत तक नुकसान कर सकता है। इसके अलावा आर्द्र जलवायु वाली भूमि में फसल को अधिक नुकसान पहुंचाता है। इसका प्रकोप बढ़ने पर कभी-कभी तो पूरी फसल ही खराब हो जाती है और किसान की मेहनत पर पानी फिर जाता है।  

तना छेदक कीट पर नियंत्रण के लिए क्या करें उपाय (What measures should be taken to control stem borer insect)

धान की फसल को तना छेदक रोग से बचाने के लिए किसानों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और प्रकोप होने पर अनुसंशित कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए। धान की फसल को तना छेदक कीट के प्रकोप से बचाने के लिए कृषि जानकारों द्वारा जो उपाय बताए गए हैं, वे इस प्रकार से हैं

  • जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक धान की बुवाई कर देनी चाहिए।
  • बुवाई के बाद नर्सरी में 15 दिन के बाद फिप्रोनिल 0.3 प्रतिशत जीआर घटक युक्त एग्रोनिल-जीआर प्रति किलो प्रति 100 चौरस तीन मीटर क्षेत्र में रेत में मिलाकर देना चाहिए।
  • फसल में नाइट्रोजन युक्त खाद का उपयोग करना चाहिए। फसल में यूरिया की जगह पर अमोनियम सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • रोपाई से पहले पौधे के ऊपर के भाग को काट कर रोपाई करनी चाहिए।
  • इस कीट के प्रौढ़ पतंग को आकर्षित करने के लिए गंध पाश जाल का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • रोपाई के बाद फसल की अवस्था के अनुसार अमेज-एक्स प्रति 80 ग्राम या फेम प्रति 60 मिली या कोराजन प्रति 60 मिली, टाकूमी प्रति 100 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव करना चाहिए।

धान की फसल में ब्लाइट या ब्लास्ट रोग का भी बना रहता है खतरा

धान के शुरुआती अवस्था में तापमान में और नमी में बढ़ोतरी के कारण ब्लाइट या ब्लास्ट रोग के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। धान का यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी कवक द्वारा फैलता है। धान का यह ब्लास्ट रोग काफी खतरनाक रोग माना जाता है इससे फसल को काफी नुकसान पहुंचाता है। इस रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों और उनके निचले भागों पर छोटे और नीले रंग के धब्बे बनने लगते हैं और बाद में आकार में बढ़कर ये धब्बें नाव की तरह दिखाई देने लगते हैं। बिहार में यह रोग मुख्यत: सुगंधित धान में अधिक पाया जाता है।यदि समय पर इस रोग का उपचार नहीं किया जाए तो फसल को काफी नुकसान होता है।

धान को ब्लाइट या ब्लास्ट रोग से बचाने के लिए क्या करें उपाय (What measures should be taken to protect paddy from blight or blast disease)

धान को ब्लाइट या ब्लास्ट रोग से बचाने के लिए कृषि जानकारों ने जो उपाय बताएं गए है जिसमें कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है साथ ही कुछ सावधानियां भी बरतनी पड़ती हैं। कृषि जानकारों द्वारा बताएं गए उपाय इस प्रकार से हैं

  1. धान को ब्लाइट या ब्लास्ट रोग के संक्रमण से बचाने के लिए वेभिस्टिन एक ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  2. रुक-रुक कर बारिश होने की दशा में नर्सरी में लीफ बोरर ओर झुलसा रोग होने की संभावना अधिक रहती है। ऐसे में इस रोग से पौधों को बचाने के लिए हेक्साकोनाजोल और प्लांटोमाइसन एक ग्राम प्रति लीटर पानी के साथ मिलाकर पत्तियों पर छिड़काव करन चाहिए।
  3. यदि इसके बाद भी ब्लास्ट रोग की समस्या रहती है तो टेबुकोनाजोल 50 प्रतिशत और ट्राइफ्लॉक्सीस्ट्रोबिन 25 प्रतिशत को 4 ग्राम प्रति डेढ़ लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद हर सात से 10 दिनों के अंतराल में इस छिड़काव को दोहराना चाहिए।

धान को ब्लाइट या ब्लास्ट रोग से बचाने के अन्य उपाय

  1. बीज को बोने से पहले बेविस्टीन 2 ग्राम या कैप्टान 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए और इसके बाद ही बुवाई करनी चाहिए।
  2. नत्रजन उर्वरक उचित मात्रा में थोड़ी-थोड़ी करके कई बार देना चाहिए।
  3. खड़ी फसल में 250 ग्राम बेविस्टीन और 1.25 किलोग्राम इंडोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।
  4. हिनोसान का छिड़काव भी किया जा सकता है। इसमें एक छिड़काव पौधशाला में रोग देखते ही कर देना चाहिए। इसके बाद दो से तीन छिड़काव 10 से 15 दिनों के अंतराल में बालियां निकलने तक करना चाहिए।
  5. बीम नामक दवा की 300 मिली ग्राम मात्रा को 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव किया जा सकता है।
  6. बुवाई के लिए धान की रोग रोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।

किसानों को सलाह

किसी भी कीटनाशक या दवा का इस्तेमाल करने से पहले अपने जिले के कृषि विभाग के कृषि विशेषज्ञों से सलाह अवश्य लेनी चाहिए और विभाग द्वारा अनुसंशित कीटनाशक या दवा का ही उपयोग करना चाहिए।

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