प्रकाशित - 23 Jun 2024 ट्रैक्टर जंक्शन द्वारा
धान खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल है। भारत के कई राज्यों में प्रमुखता से धान की खेती (Paddy farming) की जाती है। इस समय धान की नर्सरी (paddy nursery) तैयार करने का काम किया जा रहा है ताकि बरसात शुरू होने के बाद धान की बुवाई की जा सके। इसी बीच इन दिनों धान की नर्सरी में स्पाइनारियोविरिडे समूह के वायरस का प्रकोप दिखाई दिया है। इस वायरस के कारण धान के पौधे बौने रह जाते हैं और अधिक हरे दिखाई देते हैं, जबकि इनकी पत्तियां पीली दिखाई देती है। ऐसे में धान के बौनेपन की समस्या से जूझ रहे किसानों के लाभार्थ कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी रोकथाम के उपाय बताए हैं जो किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। तो आइये जानते हैं धान की फसल में बौनेपन की समस्या को कैसे दूर करें।
जब धान की बुवाई (sowing of paddy) के शुरुआती महीने में ही इसके पत्ते पीले पड़ने लगे तो समझ जाना चाहिए कि आपकी फसल बौनेपन की समस्या से ग्रस्त हो सकती है। धान में बौनेपन की समस्या खरपतवारों व पोषक तत्वों की कमी के कारण आती है।
कृषि वैज्ञानिकों ने धान की फसल में बौनेपन की समस्या को दूर करने के लिए कुछ उपाय बताए हैं, जो इस प्रकार से हैं-
कृषि वैज्ञानिकों की ओर से धान की सीधी बुवाई (direct sowing of paddy) पर जोर दिया जा रहा है। सीधी बुवाई करने से सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इस तकनीक से खेती करने पर लागत कम आती है और पैदावार भी अच्छी मिलती है। वहीं फसल में कीट-रोग के प्रकोप की भी कम संभावना होती है। सीधी बुवाई तकनीक के तहत धान की नर्सरी तैयार नहीं की जाती है बल्कि धान के बीजों की सीधे खेत में बुवाई कर दी जाती है। इससे पानी की बचत होती है। वहीं नर्सरी विधि में पहले धान की नर्सरी तैयार की जाती है, उसके 20-25 दिन बाद इन पौधों की मुख्य खेत में रोपाई की जाती है। रोपण विधि में पानी अधिक लगता है, इसके लिए खेत में चार से पांच सेमी पानी भरा होना जरूरी है जबकि सीधी बुवाई में पानी की बचत होती है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने साल 2022 में धान की फसल में पहली बार इस बीमारी के बारे में जानकारी दी थी। इस बीमारी के कारण राज्य में धान की खेती वाले क्षेत्रों में पौधों में बौनेपन की समस्या देखी गई। इस बीमारी से सभी प्रकार की चावल की किस्में प्रभावित हुई थी। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने धान में बौनेपन की समस्या से ग्रस्त पौधों के नमूने इकट्ठे किए और पौधों में बौनेपन की शिकायत के पीछे के कारणों का पता लगाने में जुट गए।
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