प्रकाशित - 23 Aug 2024
बारिश के मौसम में किसान कई प्रकार की सब्जियों की खेती करते हैं। इनमें से एक सब्जी जिसकी बाजार में काफी डिमांड रहती है, उसका नाम है- ककोड़ा (Kakoda)। ककोड़ा जिसे काटवल, परोड़ा, खेख्सी के नाम से भी जाना जाता है। इसकी खेती करके किसान काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। यह सब्जी बारिश के मौसम में काफी फलती और फूलती है। जंगलों में इसे स्वत: उगते हुए देखा जा सकता है। इसके औषधीय गुणों के कारण इस सब्जी के भाव भी बाजार में काफी अच्छे मिलते हैं। भारी डिमांड होने पर इस सब्जी के भाव 150 रुपए प्रति किलोग्राम तक हो जाते हैं। ऐसे में किसानों के लिए ककोड़ा की खेती (Kakoda cultivation) एक बेहतर कमाई सौदा साबित हो सकती है। हालांकि इसकी खेती भारत के कुछ राज्यों में ही की जाती है।
ककोड़ा (Kakoda) एक ऐसी बहुवर्षीय कद्दूवर्गीय सब्जी है जिसके ऊपर नर्म कांटे होते हैं। यह खाने में स्वादिष्ट होती है। इसमें पोषक तत्वों की मात्रा भरपूर होती है। ककोड़ा की सब्जी बनाकर तो खाई ही जाती है, इसके साथ ही इसका अचार भी बनाया जाता है। ककोड़ा के बहुत से फायदे (Kakoda Benefits) है, यह कफ, वात, पित्त नाशक होने के साथ ही मधुमेह रोगी के शर्करा को भी नियंत्रण करने में सहायक होती है। इसकी जड़ का उपयोग बवासीर में रक्त बहाव की समस्या के लिए, पेशाब की शिकायत व बुखार जैसे रोगों में किया जाता है। इस तरह ककोड़ा की खेती किसानों के लिए आय का एक अच्छा जरिया हो सकती है।
ककोड़ा की खेती (Kakoda ki Kheti) से काफी अच्छी कमाई की जा सकती है। इसकी फसल सब्जी के रूप में दो से तीन माह के बाद ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इससे ताजे और छोटे आकार के ककोड़ा की फसल प्राप्त हो जाती है जिसे बेचकर किसान काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। इसके अलावा इसकी फसल की कटाई एक साल बाद ही की जा सकती है। खास बात यह है कि इसे एक बार लगाने के बाद इसके मादा पौधे से करीब 8 से 10 सालों तक फल प्राप्त किए जा सकते हैं। यानी किसान एक बार इसे लगाकर लगातार 8 से 10 सालों तक इससे कमाई कर सकता है। एक अनुमान के मुताबिक ककोड़ा के बाजार में आने पर इसका शुरुआती भाव 90 से 100 रुपए तक होता है। जबकि बाजार डिमांड बढ़ने पर ककोड़ा का भाव (kakoda ka bhav) 150 रुपए तक पहुंच जाता है। ऐसे में किसान इसकी खेती करके काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के भोकर तहसील में रहने वाले आनंद बोइनवाड ने तीन एकड़ में ककोड़ा की खेती की और इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया। 3 एकड़ में इसकी खेती से 60 से 70 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। इसकी बिक्री 15 हजार प्रति क्विंटल के हिसाब से होती है। इस तरह इसकी 3 एकड़ में खेती से 9 लाख रुपए तक का मुनाफा कमाया जा सकता है। यदि इसमें से एक लाख इसकी लागत भी निकाल दें तो भी इससे 8 लाख रुपए तक का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
ककोड़ा की खेती (Kakoda cultivation) के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की ओर से इंदिरा ककोड़ा 1 (आरएमएफ-37) नामक किस्म विकसित की गई है। इस किस्म की खेती उत्तर प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में की जा सकती है। यह बेहतर किस्म कीटों के प्रति प्रतिरोधी किस्म है। यह किस्म 35 से 40 दिन में तुड़ाई/कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यदि इस किस्म की उपज की बात करें तो इसकी औसत उपज पहले साल 4 क्विंटल प्रति एकड़, दूसरे साल 6 क्विंटल प्रति एकड़ और तीसरे साल 8 क्विंटल प्रति एकड़ तक मिल जाती है। इसके अलावा ककोड़ा की अम्बिका-12-1, अम्बिका-12-2, अम्बिका-12-3 किस्में भी बेहतर पैदावार देने वाली किस्में हैं।
ककोड़ा की खेती (Kakoda cultivation) अम्लीय भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन रेतीली जिसमें पर्याप्त मात्रा में जैविक तत्व हो और अच्छा जल निकास हो इसकी खेती के लिए सबसे अच्छी रहती है। भूमि का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। ककोड़ा की बुवाई करने से पहले खेत को अच्छी तरह जुताई कर तैयार कर लेना चाहिए। इसके स्वस्थ और अच्छी अंकुरण वाले बीज की 8 से 10 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर जरूरत होती है। यदि कंद से रोपण कर रहे हैं तो इसके लिए 10,000 कंद प्रति हैक्टेयर के हिसाब से लेना चाहिए। ककोड़ा के बीजों की बुवाई क्यारियां बनाकर या गड्ढों में की जा सकती है। बीजों की बुवाई के लिए बेड में 2 सेंटीमीटर की गहराई में 2 से 3 बीज की बुवाई करनी चाहिए। मेड से मेड की दूरी करीब 1 मीटर या पौधे से पौधों की दूरी करीब एक मीटर रखनी चाहिए। ककोड़ा की गड्ढों में बुवाई या रोपाई करते समय गड्ढे से गड्ढे के बीच की दूरी 1 गुना 1 मीटर रखनी चाहिए। प्रत्येक गड्ढे में 2 से 3 बीज की बुवाई करनी चाहिए जिसमें बीच वाले गड्ढे में नर पौधा रखना चाहिए तथा बाकी गड्ढों में मादा पौधों को रखना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि एक गड्ढे में एक ही पौधा (Kakoda Plant) रखा जाए।
ककोड़ा की खेती (Kakoda Cultivation) में आमतौर पर 200 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद को खेत की अंतिम जुताई के समय खेत की मिट्टी में मिला देना चाहिए। इसके अलावा 65 किलोग्राम यूरिया, 375 किलोग्राम एसएसपी और 67 किलोग्राम एमओपी प्रति हैक्टेयर के हिसाब से देनी चाहिए। अब बात करें सिंचाई की तो फसल की बुवाई के तुरंत बाद खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए। यदि बारिश का मौसम है तो सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन दो बारिश के समय में अधिक अंतर होने पर सिंचाई करनी चाहिए। खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था रखें ताकि अधिक पानी होने पर इसका खेत में ठहराव नहीं हो पाए, क्योंकि अधिक पानी की वजह से इसके बीज और कंद सड़ सकते हैं। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना चाहिए इसके लिए फसल में दो से तीन बार गुड़ाई करनी चाहिए। ककोड़ा की बेल को सहारा देने के लिए डंडा, तार जैसी वस्तुओं का सहारा देना चाहिए ताकि इसकी बेल ठीक से बढ़ सके।
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